Safa, Maheshwari culture and traditions


राजस्थान की संस्कृति में साफे का अपना एक अलग ही महत्व है. साफा, इसे पगड़ी अथवा तुरबान भी कहा जाता है. एक समय ऐसा था जब राजस्थान में हर जिले और वहां की संस्कृति के अनुसार अलग अलग तरीके से साफा बांधा जाता था. साफा बांधने का ढंग जिले अथवा विभाग की पहचान कराते थे लेकिन मारवाड़ी साफा (जोधपुरी साफा) की बढ़ी लोकप्रियता ने सात समंदर पार तक अपनी पहचान बनाई. विदेशी लोगों में मारवाड़ी साफा पहनने की चाहत देखने लायक है. चाहे सुपरस्टार अमिताभ बच्चन हो, उनके साहबजादे अभिषेक बच्चन या देश के राजनीतिक या बड़े औद्योगिक घराने; जोधपुर का ‘पंचरंगी साफा’ तो इन सब को भाता ही है. देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी स्वतंत्रता दिवस के बाद गणतंत्र दिवस पर मारवाड़ी साफा पहनकर मारवाड़ी साफे का गौरव बढ़ाया हैं.

राजस्थान के मारवाड़ प्रान्त के मूल निवासी माहेश्वरी समाज में साफा (पगड़ी) को मान-सम्मान और प्रतिष्ठा का प्रतीक माना जाता है. आज के समय में भी बहूत से माहेश्वरी लोग साफा बांधते है और माहेश्वरी संस्कृति को बनाये रखे है. पुरे भारतवर्ष में माहेश्वरी समाज एकमात्र समाज हैं जिसमे साफा बांधने की प्रथा अन्य समाजों से ज्यादा है. माहेश्वरी संस्कृति के अनुसार, अलग अलग प्रसंगो में अलग अलग रंगों के साफा बांधने की परंपरा है. अच्छे और शुभ प्रसंंगो में 'पचरंगी' साफा बांधे जाते है. शोक अथवा दुखद प्रसंग में सफ़ेद साफा बांधे जाते है. माहेश्वरी समाज का साफा बांधने का अपना एक विशिष्ठ ढंग है. माहेश्वरियों में साफे में पीछे पीठ पर लटकन (साफा बांधने के बाद पीठ पर छोड़ा जानेवाला कपड़ा) नहीं छोड़ी जाती है (साफे में पीछे लटकन छोड़ने की परंपरा राजपूत समाज में प्रचलित है, इसे राजपूती साफा कहा जाता है) तथा साफे में ऊपर तुरा अथवा कमान नहीं निकाली जाती है. माहेश्वरी समाज में विवाह प्रसग में तो साफे का अनन्यसाधारण महत्व है. माहेश्वरी संस्कृति और परंपरा के अनुसार विवाह प्रसंग में बींदराजा, मुख्य सवासना तथा जिनका विवाह है उस लडके और लड़की के घरवालों (पिता, काका, भाई और दादा) के ही साफे में तुरा निकाला जाता है अन्य सभी मेहमान और रिश्तेदार परंपरागत बिना तुरेवाला साफा ही बांधते है.

वर्तमान समय में समाज के कई लोगों को साफा बांधना नहीं आता है. विवाह प्रसंग में पैसे देकर साफा बांधनेवाले को बुलाना पड़ रहा है, माहेश्वरी संस्कृति के लिए यह एक दुखद स्थिति है. समाज के लिए कार्य करनेवाले संस्थाओं-संगठनों को चाहिए की वे साफा बांधना सिखाने के शिविर आयोजित करें, साफा बांधने की प्रतियोगिताओं का आयोजन करे जिससे की माहेश्वरी संस्कृति के गौरव का प्रतिक 'साफा' माहेश्वरी संस्कृति का और माहेश्वरी समाज का अभिन्न अंग बना रहे.

2 comments: