The Maheshwari Symbol - Mod (मोड़) | Symbol of Maheshwari Community | माहेश्वरी समाज का पवित्र धार्मिक प्रतीक-चिन्ह | Mahesh Navami Date & Time

Meaning and Importance of Maheshwari Religious Symbol -


The Maheshwari community's holy Religious symbol is called the Mod (मोड़). Mod is the Maheshwaris main symbol. When the Maheshwari community has been originated with the blessing of Lord Mahesh Ji and Goddess Parvati, the preceptors (guruj) of Maheshwaris make this holy symbol by the advice of Lord Mahesha and Goddess Parvati. Mod is a symbol of Maheshwari culture and identity. This is the sign of Maheshwaris. According to the preceptors we can get divine energy by only the sight of this symbol. The presence of the Maheshwari symbol finishes the bad things and bad powers from our home, family, society and life. The sight of this divine symbol can rise the good luck of life.


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Design of Maheshwari symbol -

This is holy symbol contains a Trishul (trident) and in the middle prong of the Trishul there is a circle. The Om (ॐ) is in the centre of the circle.

Meaning of Maheshwari symbol -

The Trishul is the symbol of surrender for rescue of religion. The Trishul is a weapon and an epic, too. One side it is a weapon for sinners and enemies and the other side it is a great epic of proper sight, proper knowledge and proper character. The Trishul helps in get rid of the many types of sins. The right hand side's prong of Trishul is symbol of Truth, left hand side prong is symbol of Justice, and the middle one is symbol of Love. The Om (ॐ) in the centre of the circle is symbol of holiness and universe. The Om is the base of all kinds of moral mantras. The god has infinity incarnation and all incarnation are from ॐ. Maheshwari community always keep faith in gods. The Om is symbol of this faith. According to the preceptors it keeps together to all Maheshwaris and connects to each other every time and everywhere.

Logo of Maheshwari community is very meaningful and enriched. It awakes our internal powers and internal energy by only see it. The moral sentence of Maheshwaris is Sarve Bhavantu sukhinh means not only for Maheshwaris but also think about all people. This symbol is a symbol of truth, love and justice, which shows the ideals of Maheshwaris and the way to life.


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माहेश्वरी प्रतीक-चिन्ह का अर्थ एवं महत्व -


माहेश्वरी समाज के पवित्र धार्मिक प्रतीकचिन्ह को "मोड़" कहा जाता है, यह माहेश्वरीयों का मुख्य प्रतीक (main symbol) है। "मोड़" माहेश्वरी संस्कृति और पहचान का प्रतीक है। माहेश्वरी निशान "मोड़" समस्त समाजजनों का, हरएक माहेश्वरी व्यक्ति का प्रतीकचिन्ह (सिम्बॉल) है। यह माहेश्वरी समाज का निशान (प्रतीकचिन्ह) है। "मोड़" समस्त माहेश्वरी समाज का पहचान-चिन्ह (आइडेंटिटी ऑफ़ माहेश्वरी कम्युनिटी) है।

5151 वर्ष पूर्व (ई.स. पूर्व 3133) में जब भगवान महेशजी और माता पार्वती के कृपा से 'माहेश्वरी' समाज की उत्पत्ति हुई थी तब भगवान महेशजी ने महर्षि पराशर, सारस्‍वत, ग्‍वाला, गौतम, श्रृंगी, दाधीच इन छः ऋषियों को माहेश्वरीयों का गुरु बनाया और उनपर माहेश्वरीयों को मार्गदर्शित करने का दायित्व सौपा।

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कालांतर में इन गुरुओं ने ऋषि भारद्वाज को भी माहेश्वरी गुरु पद प्रदान किया जिससे माहेश्वरी गुरुओं की संख्या सात हो गई जिन्हे माहेश्वरीयों में सप्तर्षि कहा जाता है। सप्तगुरुओं ने भगवान महेशजी और माता पार्वती की प्रेरणा से इस अलौकिक पवित्र माहेश्वरी निशान (प्रतिक-चिन्ह) और ध्वज का सृजन किया। इस निशान को 'मोड़' कहा जाता है जिसमें एक त्रिशूल और त्रिशूल के बीच के पाते में एक वृत्त तथा वृत्त के बीच ॐ (प्रणव) होता है। माहेश्वरी ध्वजा पर भी यह निशान अंकित होता है l केसरिया रंग के ध्वज पर गहरे नीले रंग में यह पवित्र निशान अंकित होता है, इसे 'दिव्यध्वज' कहते है। दिव्य ध्वज माहेश्वरी समाज की ध्वजा है। गुरुओं का मानना था की यह ध्वज सम्पूर्ण माहेश्वरीयों को एकत्रित रखता है, आपस में एक-दुसरेसे जोड़े रखता है।

माहेश्वरी निशान का अर्थ - 


त्रिशूल धर्मरक्षा के लिए समर्पण का प्रतीक है। ”त्रिशुल” शस्त्र भी है और शास्त्र भी है। आततायियों के लिए यह एक शस्त्र है, तो सम्यक दर्शन, सम्यक ज्ञान और सम्यक चरित्र का यह एक अनिर्वचनीय शास्त्र भी है। त्रिशुल विविध तापों को नष्ट करने वाला एवं दुष्ट प्रवृत्ति का दमन करने वाला है। 'त्रिशूल' आदिशक्ति पार्वती माता का प्रतिक है। त्रिशूल का दाहिना पाता सत्य का, बाया पाता न्याय का और बिचका पाता प्रेम का प्रतिक भी माना जाता है। वृत्त के बिच का ॐ (प्रणव) स्वयं भगवान महेशजी का प्रतिक है, ॐ पवित्रता का प्रतीक है, ॐ अखिल ब्रम्हांड का प्रतीक है। सभी मंगल मंत्रों का मूलाधार ॐ है। परमात्मा के असंख्य रूप है उन सभी रूपों का समावेश ओंकार में हो जाता है। ॐ सगुण निर्गुण का समन्वय और एकाक्षर ब्रम्ह भी है। भगवदगीता में कहा है “ ओमित्येकाक्षरं ब्रम्ह”। माहेश्वरी समाज आस्तिक और प्रभुविश्वासी रहा है, इसी ईश्वर श्रध्दा का प्रतीक है ॐ। यह माहेश्वरीयों का यह पथप्रदर्शक, प्रेरक गौरवशाली निशान है। सत्य, प्रेम, न्याय का उद्घोषक यह माहेश्वरी निशान सचमुच बडा अर्थपूर्ण है।

माहेश्वरीयों का बोधवाक्य -

" सर्वे भवन्तु सुखिन: " यह माहेश्वरीयों का बोधवाक्य है 'सर्वे भवन्तु सुखिन:' अर्थात केवल माहेश्वरीयों का ही नही बल्कि सर्वे (सभीके) सुख की कामना का यह सिद्धांत माहेश्वरी संस्कृति के विचारधारा की महानता को दर्शाता है

***हमारे इस अलौकिक 'माहेश्वरी निशान' का प्रचार-प्रसार हमें जितना हो उतना अधिकाअधिक करना चाहिए। इसे अपना facebook profile pic बनाइये, जहाँ-जहाँ हो सके वहाँ इसे छपाईए (विजिटिंग कार्ड, उदघाटन पत्रिका, वर्धापन दिन-पत्रिका, विवाह-पत्रिका, आदि)। घर में, दुकान में सर्वत्र लगाईए। हर उत्सव में हर कार्यक्रम में इससे प्रेरणा लिजिए।

माहेश्वरी निशान (Holy Maheshwari symbol) "मोड़" को पुरे देशभर में और विदेशों में बसे समाजबंधु सही प्रारूप में, एकसमान रूप में छाप सके, प्रिंट कर सकें इसलिए इस माहेश्वरी निशान / सिम्बॉल के प्रारूप (डिझाइन) को विकसित कर लिया गया है. कार्यक्रम पत्रिका, निमंत्रण पत्रिका, बैनर, टी-शर्ट, ध्वज (Flag), दुकान के बोर्ड, व्हिजिटिंग कार्ड आदि पर छापने हेतु इसकी png file को Download करने के लिए कृपया निचे दिए हुए लिंक पर क्लिक करें (या अपने डिझायनर को इस लिंक से यह सिम्बॉल Download करकर Use करने के लिए कहिये). Link > File:Maheshwari Samaj Logo.png

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Happy Dussehra to all. Jay Mata Di !


सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके। शरण्ये त्र्यम्बके गौरी नारायणी नमोस्तुऽते॥
आध्यंतरहीते देवी आद्यशक्ति महेश्वरी। योगजे योग सम्भुते महालक्ष्मी नमोस्तुऽते॥
महाकाली महालक्ष्मी महासरस्वती देव्यै। त्रिरूपा त्रिगुणात्मिका महेश्वरी नमोस्तुऽते॥
देहि सौभाग्यं आरोग्यं देहि में परमं सुखम्। रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषोजहि॥

माहेश्वरी संस्कृति का अभिन्न अंग- तीज का त्योंहार


माहेश्वरी समाज में "तीज" के त्यौहार को माहेश्वरीयों का सबसे बड़ा त्योंहार माना जाता है. माहेश्वरी जिस तीज को बहुत आनंद और आराध्य भाव से मनाते हैं, वह देश के विभिन्न भागों में, कजली तीज, बड़ी तीज या सातुड़ी़ तीज के नाम से जानी जाती है तीज का त्यौंहार श्रावण (सावन) महीने के बाद आनेवाले भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की तृतीया को मनाया जाता है (छोटी तीज श्रावण में आती है). "तीज" माहेश्वरी संस्कृति का अभिन्न अंग है.

तीज का त्यौंहार तीज माता को प्रसन्न करने के लिये मनाया जाता है. तीज के त्यौंहार पर देवी पार्वती के अवतार तीज माता की उपासना, सुख, समृद्धि, अच्छी वर्षा और फसल आदि के लिये की जाती है. इस दिन उपवास कर भगवान महेश-पार्वती की पूजा की जाती है. निम्बड़ी (नीम वृक्ष) की पूजा की जाती है. विवाहित महिलाएं हाथों पर मेहंदी लगाती है, चुडिया, बिंदी, पायल आदि पहनकर सोलह सिंगार करती है. तीज की कहानी कही जाती है और महेश-पार्वती की आरती की जाती है. रात में चंद्र के उदय होने के बाद परिवार के सभी सदस्य एकसाथ बैठकर, हरएक सदस्य सोने के किसी गहने से (जैसे की अंगूठी) अपना-अपना पिण्डा पासता है (जैसे जन्मदिन के दिन केक काटा जाता है, ऐसी ही कुछ रीती है जिसे पिण्डा पासना कहा जाता है). तीज का त्यौंहार भारत के राजस्थान राज्य में और देश-विदेश में बसे हुए माहेश्वरीयों में बहुत ही आस्था के साथ तथा धूम धाम से मनाया जाता है.


तीज के त्यौंहार पर किसकी उपासना की जाती है और क्यों की जाती है?
तीज के त्यौहार पर देवी पार्वती के अवतार तीज माता की उपासना की जाती है. देवी पार्वती ही भाद्रपद के महीने की तृतीय तिथि की देवी के रूप में तीज माता के नाम से अवतरित हुईं थीं. भगवान महेशजी के साथ ही उनकी पत्नी को भी प्रसन्न करने के लिये पार्वतीजी के अवतार तीज माता की उपासना की जाती है.

मान्यता के अनुसार, देवी पार्वती बहुत लंबे समय के बाद अपने पति भगवान शिव (महेश) से मिलीं थीं, और इस खुशी में देवी पार्वती ने इस दिन को यह वरदान दिया कि इस दिन जो भी तृतीया तिथि की देवी तीज माता के रूप में उनकी (देवी पार्वती की) पूजा-आराधना करेगा, वे उसकी मनोकामना पूरी करेंगी. तीज के त्यौंहार के दिन विवाहित स्त्रियां अपने पति की लंबी आयु के लिये तीज माता की पूजा करती हैं, जबकि पुरुष अच्छी "वर्षा, फसल और व्यापार" के लिये तीज माता की उपासना करते हैं. तीज का पर्व महेश-पार्वती के प्रेम के प्रतिक स्वरुप में आस्था और उल्लास के साथ मनाया जाता है.





माहेश्वरी श्रावण मास


पौराणिक मान्यता के अनुसार श्रावण/सावन महीने को देवों के देव महादेव भगवान महेश का महीना माना जाता है। माहेश्वरी समाज की उत्पत्ति भगवान महेश की कृपा (वरदान) से होने के कारन माहेश्वरी समाज भगवान महेश को अपना जनेता (जन्मदाता) मानता है, स्वयं को महेशजी की संतान मानता है। भगवान महेश माहेश्वरीयों के प्रथम आराध्य है, इसलिए माहेश्वरीयों में भगवान महेशजी के प्रिय "श्रावण माह" का बहुत महत्व है। जैसे जैनों में चातुर्मास का महत्व है... जैसे मुस्लिमों में रमजान के महीने का महत्व होता है उसी तरह माहेश्वरीयों में श्रावण माह का महत्व है। माहेश्वरी संस्कृति के प्रमुख पवित्र पर्वों में से एक पर्व है- श्रावण मास। माहेश्वरी समाज में यह महीना "माहेश्वरी श्रावण मास" के नाम से एक विशेष पर्व के रूप में मनाया जाता है। श्रावण मास परमपिता महेशजी और जगतजननी माता पार्वती के प्रति पूर्ण भक्ति, समर्पण एवं आस्था को प्रकट करता है।

भारतीय कैलेण्डर (पंचाग) के अनुसार श्रावण पांचवा महीना होता है, इस मास के दौरान या पूर्णिमा के दिन श्रवण नक्षत्र आता है। इस कारण इस मास का नाम श्रावण पड़ा। शास्त्रानुसार श्रावण मास मे भगवान विष्णु चार मास के लिए योगनिद्रा (निद्रा) में चले जाते है जिसे चौमासा (चातुर्मास) भी कहते है, तत्पश्चात् भगवान विष्णु का सृष्टि के संचालन जो दायित्व है वो भगवान महेश (शिव) वहन करते है। चातुर्मास में सृष्टि का सञ्चालन प्रत्यक्षरूपसे भगवान् महेशजी करते है इस कारण चातुर्मास के प्रधान देवता भगवान महेश है।

पौराणिक मान्यता के अनुसार जब देवी सती ने अपने पिता दक्ष के घर में योगशक्ति से शरीर त्याग किया था, उससे पहले देवी सती ने महादेव को हर जन्म में पति के रूप में पाने का प्रण किया था। अपने दूसरे जन्म में देवी सती ने पार्वती के नाम से हिमाचल और रानी मैना के घर में पुत्री के रूप में जन्म लिया। पार्वती ने युवावस्था के श्रावण महीने में महादेव को पति के रूप में पाने के लिए कठोर व्रत किया और उन्हें प्रसन्न कर विवाह किया, जिसके बाद ही महादेव के लिए यह महीना विशेष प्रिय हो गया। भगवान महेश और जगतजननी पार्वती के प्रणय (प्रेम) का महीना है- श्रावण प्रेमी-प्रेमिका के रूप में, पति-पत्नी के रूप में अमर प्रेम के वैश्विक प्रतिक (The universal symbol of true Love) परम पुरुष (शिव) और प्रकृति (भवानी) का प्रणय ही श्रावण की आध्यात्मिक आर्द्रता है

श्रावण महिना भगवान महेश-पार्वती के आराधना का पर्व है इस महीने में प्रतिदिन नित्य प्रार्थना, मंगलाचरण, महेश मानस पूजा, महेशाष्टक का पठन, ओंकार (ॐ) का जप, अष्टाक्षर मंत्र ॐ नमो महेश्वराय का जप और अन्नदान किया जाता है शिव महापुराण की कथा का आयोजन किया जाता है श्रावण माह (महीने) में की गयी आराधना से स्वास्थ्य-धन-धान्य-सम्पदा आदि ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है महेश-पार्वती की युगल स्वरुप में पूजा-आराधना से पति-पत्नी में प्रेम प्रगाढ़ (गहरा) होता है, दाम्पत्य जीवन सुखी होता है परिवार में आपसी प्यार बढ़ता है माहेश्वरी समाज में श्रावण के महीने में सत्संग (भजन संध्या) और हास्य-व्यंग कवि सम्मेलनों का आयोजन करने की परंपरा है (पिछले कुछ समय में यह परंपरा कुछ हद तक खंडित हुई है लेकिन कई स्थानों पर अभी भी सत्संग (भजन संध्या) और हास्य-व्यंग कवि सम्मेलनों का आयोजन किया जाता है)

श्रावण मास सरल व्रत विधि -
श्रावण के सरल व्रत विधि के अनुसार श्रावण मास के प्रथम दिन प्रातः दैनिक कार्यों व स्नान आदि से निवृत्त होने के बाद परिवारजनों की उपस्थिति में घर में मां पार्वती व महेशजी की अथवा महेश परिवार की प्रतिमा या चित्र (फोटो) की स्थापना करें और तिल के तेल का अखंड दीप प्रज्वलित करें। मंगल कलश की स्थापना करें। मां पार्वती व भगवान महेशजी को जल, मोली, रोली, चावल, पुष्प, युग्मपत्र (आपटा-पर्ण), नारियल, दक्षिणा आदि चढ़ाकर पूजन करें। प्रतिदिन गणेशजी, माँ पार्वती, महेशजी, कुलदेवी और ग्रामदेवी की आरती करें। इसके बाद मंगलाचरण कहकर महेश-पार्वती को नमन करें। मां पार्वती का ध्यान कर उनसे सुख, समृद्धि, सौभाग्य और घर में शांति के लिए प्रार्थना करें, इसके बाद प्रसाद वितरित करें। विधिविधान एवं पवित्र तन-मन से किए इस श्रावण मास व्रत से व्रती पुरुष का दुर्भाग्य भी सौभाग्य में परिवर्तित हो जाता है। यह व्रत मनो:वांछित धन, धान्य, स्त्री, पुत्र, बंधु-बांधव एवं स्थाई संपत्ति प्रदान करने वाला है। श्रावण मास के व्रत से महेश-पार्वती की कृपा व मनोवांछित सिद्धि-बुद्धि की प्राप्ति होती है।

श्रावण माह के प्रत्येक सोमवार को महेशजी की और प्रत्येक मंगलवार को देवी पार्वती की पूजा का महत्व बताया गया है। श्रावण में ही आदिशक्ति पार्वती को समर्पित हरितालिका तीज का पर्व भी मनाया जाता है। सुहागन महिलाएं अपने पति के लम्बी उम्र के लिए और कुमारिकाएं सुयोग्य वर (पति) पाने के लिए हरितालिका तीज का व्रत करती है। इस माह में महेश-पार्वती के पूजन मात्र से सम्पूर्ण महेश परिवार (शिव परिवार) की प्रसन्नता-आशीर्वाद प्राप्त होता है। भगवान महेश (शिव) सभी के लिए वरदाता है जो जैसा मांगें उसे वैसी ही सम्पदा दे देते हैं।

महेश-पार्वती को आपटा-पर्ण चढाने का महत्व -


माहेश्वरीयों में महेशजी को आपटा-पर्ण चढाने की परंपरा रही है। आपटा-पर्ण को सोनपत्ता और युग्मपत्र के नाम से भी जाना जाता है। भक्त भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए बेलपत्र चढ़ाते हैं लेकिन माहेश्वरीयों में महेशजी को आपटा-पर्ण (सोनपत्ता/युग्मपत्र) चढाने की परंपरा रही है। आपटा का संस्कृत नाम 'अश्मंतक' है। पौराणिक साहित्य में आपटा को महावृक्ष कहा गया है। आपटा वृक्ष के पत्र हृदयाकृति होते है, इनका आकर ऐसा होता है जैसे की 2 भाग मिलकर एक ह्रदय (दिल) बना हो इसलिए इसे युग्मपत्र भी कहा जाता है। महाराष्ट्र में दशहरा के दिन 'आपटा' वृक्ष के पत्ते बाँटने की प्रथा को 'सोना' देना कहते हैं। मान्यता है की कुबेर ने आपटा के वृक्ष पर सुवर्णमुद्राओं की वर्षा की थी, इसीलिए आपटा-पर्ण को सोना (Gold) माना गया है। महेश-पार्वती को आपटा चढाने से धन-धान्य-समृद्धि की प्राप्ति होती है। पति-पत्नी मिलकर एकसाथ महेश-पार्वती को आपटा-पर्ण चढाने से उनका आपसी प्रेम बढ़ता है।

अश्मन्तक महावृक्ष महादोषनिवारण ।
इष्टानां दर्शनं देहि कुरु शत्रुविनाशनम् ।।
अर्थ: हे अश्मंतक महावृक्ष, तुम महादोषोंका निवारण करनेवाले हो। मुझे मेरे इष्टदेवताओं का, मित्रोंका दर्शन करवाओ और मेरे शत्रुओंका नाश करो।

क्या आपके पूजा में (पूजाघर में) महेश परिवार (भगवान महेशजी, सर्वकुलमाता आदिशक्ति माँ भवानी एवं सुखकर्ता-दुखहर्ता गणेशजी) बिराजमान है? ...यदि नही है तो सावन (श्रावण) माह के पावनपर्व पर सोमवार के दिन "महेश परिवार" को विधिपूर्वक अपने पूजा में स्थापित करें। प्रतिदिन (खासकर सोमवार के दिन) सपरिवार भगवान महेशजी की आरती करें। आपकी एवं आपके घर-परिवार की सुख-समृद्धि दिन ब दिन बढ़ती जाएगी। पौराणिक मान्यता है की जिस घर-परिवार में 'महेश परिवार' की फोटो या मूर्ति श्रध्दापूर्वक बिराजमान होती है वहां पूरा परिवार बड़े प्यार से मिल-जुलकर रहता है; साथ ही सुख-समृद्धि-सम्पदा की दिन-प्रतिदिन वृद्धि होती है।

श्रावण के इस प्रेम-पर्व पर महेश-पार्वती के चरणों में प्रार्थना है की आप सभी का दाम्पत्य जीवन आनंदमय-मंगलमय रहे। आप सभी को श्रावण मास की बहुत-बहुत शुभकामनाएं !
जय भवानी, जय महेश !!

देखें- भगवान गणेशजी की आरती > ॐ जय श्री गणेश हरे

देखें- महेशजी की आरती > जय महेश जय महेश जय महेश देवा






Mahesh Navami | Maheshwari Vanshotpatti Diwas | The Biggest Festival Of Maheshwari Community / Maheshwari Samaj | Mahesh Navami Date & Time

Origin day of Maheshwari community means Maheshwari Vanshotpatti Diwas is known as Mahesh Navami. Mahesh Navami is a historical and religious festival of Maheshwari community. According to the Hindu calendar, this festival celebrated on the ninth day of Shukla Paksha in the month of Jyeshtha (May or June), every year. Mahesh Navami is the festival which Maheshwari peoples (Maheshwari Samaj) celebrates as the origin/foundation day of Maheshwari dynasty/Maheshwarism (Maheshwaritva), founded in 3133 BC.

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The Maheshwari Flag (Divyadhwaj) 900x900 pxl PNG

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Line Art The Maheshwari Flag (Divyadhwaj) PNG


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Happy Maha Shivratri. Jay Mahesh !


महाशिवरात्रि (आम बोलचाल में शिवरात्रि) भगवान शिव (महेश्वर) का एक प्रमुख पर्व है. सनातन धर्म को माननेवालों का एक प्रमुख त्योहार है. सनातन धर्म के सभी लोग इस पर्व को भक्तिभाव से मनाते है लेकिन माहेश्वरी समाज में 'महाशिवरात्रि' को महापर्व के रूप में मनाया जाता है और माहेश्वरीयों के लिए महाशिवरात्रि का विशेष महत्व है.

महाशिवरात्रि का यह दिन भगवान महेश्वर (शिव) के अनेक लीलाओं से सम्बंधित है. पौराणिक कथाओं के अनुसार इस दिन सर्वप्रथम शिवलिंग का प्राकट्य हुवा था. शिवलिंग का यह प्रथम प्राकट्य अग्निलिंग के स्वरुप में हुवा था. महाशिवरात्रि के दिन ही भगवान महेश्वर (शिव) ने कालकूट नामक विष को अपने कंठ में रख लिया था जो समुद्र मंथन के समय बाहर आया था. अन्य एक पौराणिक कथा के अनुसार भगवान महेश्वर (शिव) का विवाह पार्वति (देवी महेश्वरी) के साथ जिस दिन हुवा था वह दिन भी महाशिवरात्रि का ही दिन था.

महाशिवरात्रि क्यों मनाई जाती है इसे लेकर कई पौराणिक कथाएं और लोक मान्यताएं प्रचलित हैं, फिर भी युवा पीढ़ी को समझाने के लिए एक लाइन में कहा जा सकता है कि आज महेश और पार्वती का मैरिज डे है. महेश-पार्वती के मिलन का पर्व है- महाशिवरात्रि. महेश-पार्वती के विवाह की वर्षगांठ (Marriage Anniversary) है- महाशिवरात्रि. महेश-पार्वती का विवाह कोई साधारण विवाह नहीं था. प्रेम, समर्पण और तप की परिणति था यह विवाह. दुनिया की बड़ी से बड़ी लव स्टोरी इसके आगे फेल है. जितनी नाटकीयता और उतार-चढ़ाव इस प्रेम कहानी में है, वो दुनिया की सबसे हिट रोमांटिक फिल्म की लव स्टोरी में भी नहीं होगी.

माहेश्वरीयों के लिए क्यों खास है महाशिवरात्रि -
माहेश्वरी समाज के उत्पत्तिकर्ता होने के कारन माहेश्वरीयों के प्रथम आराध्य और इष्टदेव है- महेश-पार्वती. महेश यह भगवान महेश्वर का संक्षिप्त नाम है. महेश (महेश्वर) यह शिव का साकार स्वरुप है. इस ब्रह्माण्ड के उत्पत्तिकर्ता के निराकार स्वरुप का नाम है 'शिव' तथा निराकार स्वरुप का प्रतिक है 'शिवलिंग' और उनके साकार स्वरुप का प्रतिक है विग्रह (शारीरिक आकर को दर्शाती उनकी मूर्ति) जिसे महेश्वर अथवा महादेव के नाम से जाना जाता है. इसे समझना आवश्यक है की इस ब्रह्माण्ड के उत्पत्तिकर्ता के निराकार स्वरुप को 'शिव' कहा जाता है और उनके साकार स्वरुप को 'महेश्वर' कहा जाता है. निराकार स्वरुप को निष्क्रिय स्थिति वाला स्वरुप माना जाता है (क्योंकि निराकार स्वरुप में कोई भी क्रिया की नहीं जा सकती) तो साकार स्वरुप को सक्रीय, क्रियाशील स्वरुप माना जाता है.

परंपरागत मान्यता के अनुसार माहेश्वरी वंशोत्पत्ति के समय महेश-पार्वती ने साकार स्वरूप में प्रकट होकर दर्शन दिए और उनके वरदान से माहेश्वरी वंशोत्पत्ति हुई इसलिए माहेश्वरीयों में महेश-पार्वती की साकार स्वरुप में भक्ति-आराधना करने की परंपरा है. महेश-पार्वती विवाह यह भी शिव के साकार स्वरुप में की गई उनकी लीला है. माहेश्वरी वंशोत्पत्ति के समय ही महेश-पार्वती द्वारा माहेश्वरी वंशोत्पत्ति करने के बाद जो सबसे पहला कार्य किया गया था वो था माहेश्वरीयों का विवाहकार्य (माहेश्वरी समाज में विवाह की विधि में बारला फेरा (बाहर के फेरे) लेने का कारन और रिवाज भी तभी से चला आ रहा है. देखें- Maheshwari - Origin and brief History). इसीलिए माहेश्वरीयों में 'विवाह संस्कार' को सबसे महत्वपूर्ण संस्कार माना जाता है और इसे मंगल कारज कहा जाता है. इसीलिए महेश-पार्वती के विवाह का दिन 'महाशिवरात्रि' माहेश्वरीयों के लिए खास है और माहेश्वरी समाज इसे महापर्व के रूप में बड़े धूमधाम से से मनाता है. 

माहेश्वरी समाज में 'महाशिवरात्रि' महेश-पार्वती के प्रति सम्पूर्ण समर्पण और आराधना का पर्व है. इस दिन माहेश्वरीयों के हर घर-परिवार में महेश-पार्वती की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है. अभिषेक किया जाता है. महेशाष्टक का पाठ किया जाता है. महेशजी के अष्टाक्षर मंत्र "ॐ नमो महेश्वराय" का जाप किया जाता है. महेशजी की आरती करके उन्हें मिष्ठानों का भोग लगाया जाता है. महाशिवरात्रि के दिन रात्रि में आधी रात तक जागकर भजन किये जाते है. आम तौर पर सनातन धर्म को माननेवाले महाशिवरात्रि के दिन उपवास रखते है लेकिन माहेश्वरीयों में महाशिवरात्रि का उपवास रखने की परंपरा नहीं है. अनेको स्थानों पर महेश-पार्वती के विवाह का आयोजन किया जाता है, महेशजी की बारात (आम बोलचाल में इसे शिव बारात कहा जाता है) नीकाली जाती है.

माहेश्वरीयों की परंपरागत मान्यता के अनुसार महाशिवरात्रि के दिन महेश-पार्वती की भक्ति-आराधना से साधक के सभी दुखों, पीड़ाओं का अंत तो होता ही है साथ ही सभी मनोकामनाएं भी पूर्ण होती है, धन-धान्य, सुख-सौभाग्य और समृद्धि की प्राप्ति होती है. कुवांरे लड़कों और लड़कियों को अनुकूल मनचाहा जीवनसाथी मिलता है. वैवाहिक जीवन में पति-पत्नी में आजीवन प्रेममय सम्बन्ध बने रहते है. भक्तों पर महेश परिवार की अपार कृपा बरसती है.

अनंतकोटी ब्रह्मांडनायक देवाधिदेव योगिराज परब्रह्म 
भक्तप्रतिपालक पार्वतीपतये श्री महेश भगवान की जय

आप सभी को महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएं ! महेश-पार्वती की कृपा आप सभी पर सदैव बनी रहे. आप सभी का कल्याण हो, मंगल हो !

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