The Maheshwari Symbol - Mod (मोड़) | Symbol of Maheshwari Community | माहेश्वरी समाज का पवित्र धार्मिक प्रतीक-चिन्ह | Mahesh Navami Date & Time

Meaning and Importance of Maheshwari Religious Symbol -


The Maheshwari community's holy Religious symbol is called the Mod (मोड़). Mod is the Maheshwaris main symbol. When the Maheshwari community has been originated with the blessing of Lord Mahesh Ji and Goddess Parvati, the preceptors (guruj) of Maheshwaris make this holy symbol by the advice of Lord Mahesha and Goddess Parvati. Mod is a symbol of Maheshwari culture and identity. This is the sign of Maheshwaris. According to the preceptors we can get divine energy by only the sight of this symbol. The presence of the Maheshwari symbol finishes the bad things and bad powers from our home, family, society and life. The sight of this divine symbol can rise the good luck of life.


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Design of Maheshwari symbol -

This is holy symbol contains a Trishul (trident) and in the middle prong of the Trishul there is a circle. The Om (ॐ) is in the centre of the circle.

Meaning of Maheshwari symbol -

The Trishul is the symbol of surrender for rescue of religion. The Trishul is a weapon and an epic, too. One side it is a weapon for sinners and enemies and the other side it is a great epic of proper sight, proper knowledge and proper character. The Trishul helps in get rid of the many types of sins. The right hand side's prong of Trishul is symbol of Truth, left hand side prong is symbol of Justice, and the middle one is symbol of Love. The Om (ॐ) in the centre of the circle is symbol of holiness and universe. The Om is the base of all kinds of moral mantras. The god has infinity incarnation and all incarnation are from ॐ. Maheshwari community always keep faith in gods. The Om is symbol of this faith. According to the preceptors it keeps together to all Maheshwaris and connects to each other every time and everywhere.

Logo of Maheshwari community is very meaningful and enriched. It awakes our internal powers and internal energy by only see it. The moral sentence of Maheshwaris is Sarve Bhavantu sukhinh means not only for Maheshwaris but also think about all people. This symbol is a symbol of truth, love and justice, which shows the ideals of Maheshwaris and the way to life.


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माहेश्वरी प्रतीक-चिन्ह का अर्थ एवं महत्व -


माहेश्वरी समाज के पवित्र धार्मिक प्रतीकचिन्ह को "मोड़" कहा जाता है, यह माहेश्वरीयों का मुख्य प्रतीक (main symbol) है। "मोड़" माहेश्वरी संस्कृति और पहचान का प्रतीक है। माहेश्वरी निशान "मोड़" समस्त समाजजनों का, हरएक माहेश्वरी व्यक्ति का प्रतीकचिन्ह (सिम्बॉल) है। यह माहेश्वरी समाज का निशान (प्रतीकचिन्ह) है। "मोड़" समस्त माहेश्वरी समाज का पहचान-चिन्ह (आइडेंटिटी ऑफ़ माहेश्वरी कम्युनिटी) है।

5151 वर्ष पूर्व (ई.स. पूर्व 3133) में जब भगवान महेशजी और माता पार्वती के कृपा से 'माहेश्वरी' समाज की उत्पत्ति हुई थी तब भगवान महेशजी ने महर्षि पराशर, सारस्‍वत, ग्‍वाला, गौतम, श्रृंगी, दाधीच इन छः ऋषियों को माहेश्वरीयों का गुरु बनाया और उनपर माहेश्वरीयों को मार्गदर्शित करने का दायित्व सौपा।

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कालांतर में इन गुरुओं ने ऋषि भारद्वाज को भी माहेश्वरी गुरु पद प्रदान किया जिससे माहेश्वरी गुरुओं की संख्या सात हो गई जिन्हे माहेश्वरीयों में सप्तर्षि कहा जाता है। सप्तगुरुओं ने भगवान महेशजी और माता पार्वती की प्रेरणा से इस अलौकिक पवित्र माहेश्वरी निशान (प्रतिक-चिन्ह) और ध्वज का सृजन किया। इस निशान को 'मोड़' कहा जाता है जिसमें एक त्रिशूल और त्रिशूल के बीच के पाते में एक वृत्त तथा वृत्त के बीच ॐ (प्रणव) होता है। माहेश्वरी ध्वजा पर भी यह निशान अंकित होता है l केसरिया रंग के ध्वज पर गहरे नीले रंग में यह पवित्र निशान अंकित होता है, इसे 'दिव्यध्वज' कहते है। दिव्य ध्वज माहेश्वरी समाज की ध्वजा है। गुरुओं का मानना था की यह ध्वज सम्पूर्ण माहेश्वरीयों को एकत्रित रखता है, आपस में एक-दुसरेसे जोड़े रखता है।

माहेश्वरी निशान का अर्थ - 


त्रिशूल धर्मरक्षा के लिए समर्पण का प्रतीक है। ”त्रिशुल” शस्त्र भी है और शास्त्र भी है। आततायियों के लिए यह एक शस्त्र है, तो सम्यक दर्शन, सम्यक ज्ञान और सम्यक चरित्र का यह एक अनिर्वचनीय शास्त्र भी है। त्रिशुल विविध तापों को नष्ट करने वाला एवं दुष्ट प्रवृत्ति का दमन करने वाला है। 'त्रिशूल' आदिशक्ति पार्वती माता का प्रतिक है। त्रिशूल का दाहिना पाता सत्य का, बाया पाता न्याय का और बिचका पाता प्रेम का प्रतिक भी माना जाता है। वृत्त के बिच का ॐ (प्रणव) स्वयं भगवान महेशजी का प्रतिक है, ॐ पवित्रता का प्रतीक है, ॐ अखिल ब्रम्हांड का प्रतीक है। सभी मंगल मंत्रों का मूलाधार ॐ है। परमात्मा के असंख्य रूप है उन सभी रूपों का समावेश ओंकार में हो जाता है। ॐ सगुण निर्गुण का समन्वय और एकाक्षर ब्रम्ह भी है। भगवदगीता में कहा है “ ओमित्येकाक्षरं ब्रम्ह”। माहेश्वरी समाज आस्तिक और प्रभुविश्वासी रहा है, इसी ईश्वर श्रध्दा का प्रतीक है ॐ। यह माहेश्वरीयों का यह पथप्रदर्शक, प्रेरक गौरवशाली निशान है। सत्य, प्रेम, न्याय का उद्घोषक यह माहेश्वरी निशान सचमुच बडा अर्थपूर्ण है।

माहेश्वरीयों का बोधवाक्य -

" सर्वे भवन्तु सुखिन: " यह माहेश्वरीयों का बोधवाक्य है 'सर्वे भवन्तु सुखिन:' अर्थात केवल माहेश्वरीयों का ही नही बल्कि सर्वे (सभीके) सुख की कामना का यह सिद्धांत माहेश्वरी संस्कृति के विचारधारा की महानता को दर्शाता है

***हमारे इस अलौकिक 'माहेश्वरी निशान' का प्रचार-प्रसार हमें जितना हो उतना अधिकाअधिक करना चाहिए। इसे अपना facebook profile pic बनाइये, जहाँ-जहाँ हो सके वहाँ इसे छपाईए (विजिटिंग कार्ड, उदघाटन पत्रिका, वर्धापन दिन-पत्रिका, विवाह-पत्रिका, आदि)। घर में, दुकान में सर्वत्र लगाईए। हर उत्सव में हर कार्यक्रम में इससे प्रेरणा लिजिए।

माहेश्वरी निशान (Holy Maheshwari symbol) "मोड़" को पुरे देशभर में और विदेशों में बसे समाजबंधु सही प्रारूप में, एकसमान रूप में छाप सके, प्रिंट कर सकें इसलिए इस माहेश्वरी निशान / सिम्बॉल के प्रारूप (डिझाइन) को विकसित कर लिया गया है. कार्यक्रम पत्रिका, निमंत्रण पत्रिका, बैनर, टी-शर्ट, ध्वज (Flag), दुकान के बोर्ड, व्हिजिटिंग कार्ड आदि पर छापने हेतु इसकी png file को Download करने के लिए कृपया निचे दिए हुए लिंक पर क्लिक करें (या अपने डिझायनर को इस लिंक से यह सिम्बॉल Download करकर Use करने के लिए कहिये). Link > File:Maheshwari Samaj Logo.png

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Happy Dussehra to all. Jay Mata Di !


सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके। शरण्ये त्र्यम्बके गौरी नारायणी नमोस्तुऽते॥
आध्यंतरहीते देवी आद्यशक्ति महेश्वरी। योगजे योग सम्भुते महालक्ष्मी नमोस्तुऽते॥
महाकाली महालक्ष्मी महासरस्वती देव्यै। त्रिरूपा त्रिगुणात्मिका महेश्वरी नमोस्तुऽते॥
देहि सौभाग्यं आरोग्यं देहि में परमं सुखम्। रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषोजहि॥