माहेश्वरी संस्कृति का अभिन्न अंग- तीज का त्योंहार | Teej | Kajli/Kajari Teej | Badi Teej | Satudi/Saturi Teej | Second Biggest Festival of Maheshwaris | Date | Satudi Teej Ki Kahani | Maheshwari Community | Maheshacharya Yogi Premsukhanand Maheshwari

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Maheshacharya Yogi Premsukhanand Maheshwari : In Maheshwari community, the festival of Teej is considered the second biggest festival of Maheshwaris. The first biggest festival of Maheshwaris is Mahesh Navami, the origin day (Maheshwari Samaj Utpatti Diwas) of Maheshwari community. The Teej which Maheshwaris celebrate with great joy and adoration is known as Kajli/Kajari Teej, Badi Teej or Satudi/Saturi Teej in different parts of the country. The festival of Teej is celebrated on the Tritiya of the Krishna Paksha of the Bhadrapad month which comes after the month of Shravan/Sawan (Chhoti Teej comes in Shravan). "Teej" is an integral part of Maheshwari culture / Maheshwaritva.

"माहेश्वरी समाज की उत्पत्ति एवं संक्षिप्त इतिहास" पुस्तक के कुछ मुख्य अंशों को पढ़ने के लिए इस Link पर click कीजिये > The Book, Maheshwari - Origin And Brief History | Author - Yogi Premsukhanand Maheshwari | माहेश्वरी - उत्पत्ति और संक्षिप्त इतिहास, योगी प्रेमसुखानन्द माहेश्वरी द्वारा लिखित पुस्तक

माहेश्वरी समाज में "तीज" का त्यौहार माहेश्वरीयों का दूसरा सबसे बड़ा त्यौहार माना जाता है. माहेश्वरीयों का पहला सबसे बड़ा त्यौहार महेश नवमी है, जो माहेश्वरी समाज का उत्पत्ति दिवस (माहेश्वरी समाज स्थापना दिवस) है. माहेश्वरी जिस तीज को बहुत आनंद और आराध्य भाव से मनाते हैं, वह देश के विभिन्न भागों में, कजली तीज, बड़ी तीज या सातुड़ी़ तीज के नाम से जानी जाती है. तीज का त्यौंहार श्रावण (सावन) महीने के बाद आनेवाले भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की तृतीया को मनाया जाता है (छोटी तीज श्रावण में आती है). "तीज" माहेश्वरी संस्कृति (माहेश्वरीत्व) का अभिन्न अंग है.


तीज का त्यौंहार तीज माता को प्रसन्न करने के लिये मनाया जाता है. तीज के त्यौंहार पर देवी पार्वती के अवतार तीज माता की उपासना, सुख, समृद्धि, अच्छी वर्षा और फसल आदि के लिये की जाती है. इस दिन उपवास कर भगवान महेश-पार्वती की पूजा की जाती है. निम्बड़ी (नीम वृक्ष) की पूजा की जाती है. विवाहित महिलाएं हाथों पर मेहंदी लगाती है, चुडिया, बिंदी, पायल आदि पहनकर सोलह सिंगार करती है. तीज की कहानी कही जाती है और महेश-पार्वती की आरती की जाती है. रात में चंद्र के उदय होने के बाद परिवार के सभी सदस्य एकसाथ बैठकर, हरएक सदस्य सोने के किसी गहने से (जैसे की अंगूठी) अपना-अपना पिण्डा पासता है (जैसे जन्मदिन के दिन केक काटा जाता है, ऐसी ही कुछ रीती है जिसे पिण्डा पासना कहा जाता है). तीज का त्यौंहार भारत के राजस्थान राज्य में और देश-विदेश में बसे हुए माहेश्वरीयों में बहुत ही आस्था के साथ तथा धूम धाम से मनाया जाता है.

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तीज के त्यौंहार पर किसकी उपासना की जाती है और क्यों की जाती है?
तीज के त्यौहार पर देवी पार्वती के अवतार तीज माता की उपासना की जाती है. देवी पार्वती ही भाद्रपद के महीने की तृतीय तिथि की देवी के रूप में तीज माता के नाम से अवतरित हुईं थीं. भगवान महेशजी के साथ ही उनकी पत्नी को भी प्रसन्न करने के लिये पार्वतीजी के अवतार तीज माता की उपासना की जाती है.

मान्यता के अनुसार, देवी पार्वती बहुत लंबे समय के बाद अपने पति भगवान शिव (महेश) से मिलीं थीं, और इस खुशी में देवी पार्वती ने इस दिन को यह वरदान दिया कि इस दिन जो भी तृतीया तिथि की देवी तीज माता के रूप में उनकी (देवी पार्वती की) पूजा-आराधना करेगा, वे उसकी मनोकामना पूरी करेंगी. तीज के त्यौंहार के दिन विवाहित स्त्रियां अपने पति की लंबी आयु के लिये तीज माता की पूजा करती हैं, जबकि पुरुष अच्छी "वर्षा, फसल और व्यापार" के लिये तीज माता की उपासना करते हैं. तीज का पर्व महेश-पार्वती के प्रेम के प्रतिक स्वरुप में आस्था और उल्लास के साथ मनाया जाता है.

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माहेश्वरी श्रावण मास | Maheshwari Shravan Mas | Shrawan Month | Sawan | Shravan Somwar | Importance | Mahesh Navami | One of the Major Holy Festivals of Maheshwari Community

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Sabhar- Book, Maheshwari Utpatti Evam Sankshipt Itihas written by Maheshacharya Yogi Premsukhanand Maheshwari Maharaj : According to mythological belief, the month of Shravan/Sawan is considered to be the month of Lord Mahesha (Lord Shiva), the God of gods. Since the Maheshwari community originated by Lord Mahesha, the Maheshwari community regards Lord Mahesha as its originator and considers itself as the descendant of Lord Mahesha. Lord Mahesha is the first deity of the Maheshwaris, hence the Shravan month favorite of Lord Mahesha has great importance among the Maheshwaris. Just like Chaturmas is important among Jains... just like the month of Ramzan is important among Muslims, similarly the month of Shravan is important among Maheshwaris. One of the major holy festivals of Maheshwari culture is the month of Shravan. In the Maheshwari community, this month is celebrated as a special festival by the name of Maheshwari Shravan Mas (माहेश्वरी श्रावण मास). The month of Shravan expresses complete devotion and faith towards the Supreme God Lord Mahesha (Lord Shiva) and the Mother of the Universe, Goddess Maheshwari (Mata Parvati). In this month, just by worshipping Mahesh-Parvati, one gets the happiness and blessings of the entire Lord Mahesha family (Lord Shiva family).

पौराणिक मान्यता के अनुसार श्रावण/सावन महीने को देवों के देव महादेव भगवान महेश का महीना माना जाता है। माहेश्वरी समाज की उत्पत्ति भगवान महेश की कृपा (वरदान) से होने के कारन माहेश्वरी समाज भगवान महेश को अपना जनेता (जन्मदाता) मानता है, स्वयं को महेशजी की संतान मानता है। भगवान महेश माहेश्वरीयों के प्रथम आराध्य है, इसलिए माहेश्वरीयों में भगवान महेशजी के प्रिय "श्रावण माह" का बहुत महत्व है। जैसे जैनों में चातुर्मास का महत्व है... जैसे मुस्लिमों में रमजान के महीने का महत्व होता है उसी तरह माहेश्वरीयों में श्रावण माह का महत्व है। माहेश्वरी संस्कृति के प्रमुख पवित्र पर्वों में से एक पर्व है- श्रावण मास। माहेश्वरी समाज में यह महीना "माहेश्वरी श्रावण मास" के नाम से एक विशेष पर्व के रूप में मनाया जाता है। श्रावण मास परमपिता महेशजी और जगतजननी माता पार्वती के प्रति पूर्ण भक्ति, समर्पण एवं आस्था को प्रकट करता है।


भारतीय कैलेण्डर (पंचाग) के अनुसार श्रावण पांचवा महीना होता है, इस मास के दौरान या पूर्णिमा के दिन श्रवण नक्षत्र आता है। इस कारण इस मास का नाम श्रावण पड़ा। शास्त्रानुसार श्रावण मास मे भगवान विष्णु चार मास के लिए योगनिद्रा (निद्रा) में चले जाते है जिसे चौमासा (चातुर्मास) भी कहते है, तत्पश्चात् भगवान विष्णु का सृष्टि के संचालन जो दायित्व है वो भगवान महेश (शिव) वहन करते है। चातुर्मास में सृष्टि का सञ्चालन प्रत्यक्षरूपसे भगवान् महेशजी करते है इस कारण चातुर्मास के प्रधान देवता भगवान महेश है।

पौराणिक मान्यता के अनुसार जब देवी सती ने अपने पिता दक्ष के घर में योगशक्ति से शरीर त्याग किया था, उससे पहले देवी सती ने महादेव को हर जन्म में पति के रूप में पाने का प्रण किया था। अपने दूसरे जन्म में देवी सती ने पार्वती के नाम से हिमाचल और रानी मैना के घर में पुत्री के रूप में जन्म लिया। पार्वती ने युवावस्था के श्रावण महीने में महादेव को पति के रूप में पाने के लिए कठोर व्रत किया और उन्हें प्रसन्न कर विवाह किया, जिसके बाद ही महादेव के लिए यह महीना विशेष प्रिय हो गया। भगवान महेश और जगतजननी पार्वती के प्रणय (प्रेम) का महीना है- श्रावण प्रेमी-प्रेमिका के रूप में, पति-पत्नी के रूप में अमर प्रेम के वैश्विक प्रतिक (The universal symbol of true Love) परम पुरुष (शिव) और प्रकृति (भवानी) का प्रणय ही श्रावण की आध्यात्मिक आर्द्रता है

श्रावण महिना भगवान महेश-पार्वती के आराधना का पर्व है इस महीने में प्रतिदिन नित्य प्रार्थना, मंगलाचरण, महेश मानस पूजा, महेशाष्टक का पठन, ओंकार (ॐ) का जप, अष्टाक्षर मंत्र ॐ नमो महेश्वराय का जप और अन्नदान किया जाता है शिव महापुराण की कथा का आयोजन किया जाता है श्रावण माह (महीने) में की गयी आराधना से स्वास्थ्य-धन-धान्य-सम्पदा आदि ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है महेश-पार्वती की युगल स्वरुप में पूजा-आराधना से पति-पत्नी में प्रेम प्रगाढ़ (गहरा) होता है, दाम्पत्य जीवन सुखी होता है परिवार में आपसी प्यार बढ़ता है माहेश्वरी समाज में श्रावण के महीने में सत्संग (भजन संध्या) और हास्य-व्यंग कवि सम्मेलनों का आयोजन करने की परंपरा है (पिछले कुछ समय में यह परंपरा कुछ हद तक खंडित हुई है लेकिन कई स्थानों पर अभी भी सत्संग (भजन संध्या) और हास्य-व्यंग कवि सम्मेलनों का आयोजन किया जाता है)

श्रावण मास सरल व्रत विधि -
श्रावण के सरल व्रत विधि के अनुसार श्रावण मास के प्रथम दिन प्रातः दैनिक कार्यों व स्नान आदि से निवृत्त होने के बाद परिवारजनों की उपस्थिति में घर में मां पार्वती व महेशजी की अथवा महेश परिवार की प्रतिमा या चित्र (फोटो) की स्थापना करें और तिल के तेल का अखंड दीप प्रज्वलित करें। मंगल कलश की स्थापना करें। मां पार्वती व भगवान महेशजी को जल, मोली, रोली, चावल, पुष्प, युग्मपत्र (आपटा-पर्ण), नारियल, दक्षिणा आदि चढ़ाकर पूजन करें। प्रतिदिन गणेशजी, माँ पार्वती, महेशजी, कुलदेवी और ग्रामदेवी की आरती करें। इसके बाद मंगलाचरण कहकर महेश-पार्वती को नमन करें। मां पार्वती का ध्यान कर उनसे सुख, समृद्धि, सौभाग्य और घर में शांति के लिए प्रार्थना करें, इसके बाद प्रसाद वितरित करें। विधिविधान एवं पवित्र तन-मन से किए इस श्रावण मास व्रत से व्रती पुरुष का दुर्भाग्य भी सौभाग्य में परिवर्तित हो जाता है। यह व्रत मनो:वांछित धन, धान्य, स्त्री, पुत्र, बंधु-बांधव एवं स्थाई संपत्ति प्रदान करने वाला है। श्रावण मास के व्रत से महेश-पार्वती की कृपा व मनोवांछित सिद्धि-बुद्धि की प्राप्ति होती है।

श्रावण माह के प्रत्येक सोमवार को महेशजी की और प्रत्येक मंगलवार को देवी पार्वती की पूजा का महत्व बताया गया है। श्रावण में ही आदिशक्ति पार्वती को समर्पित हरितालिका तीज का पर्व भी मनाया जाता है। सुहागन महिलाएं अपने पति के लम्बी उम्र के लिए और कुमारिकाएं सुयोग्य वर (पति) पाने के लिए हरितालिका तीज का व्रत करती है। इस माह में महेश-पार्वती के पूजन मात्र से सम्पूर्ण महेश परिवार (शिव परिवार) की प्रसन्नता-आशीर्वाद प्राप्त होता है। भगवान महेश (शिव) सभी के लिए वरदाता है जो जैसा मांगें उसे वैसी ही सम्पदा दे देते हैं।

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महेश-पार्वती को आपटा-पर्ण चढाने का महत्व -

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माहेश्वरीयों में महेशजी को आपटा-पर्ण चढाने की परंपरा रही है। आपटा-पर्ण को सोनपत्ता और युग्मपत्र के नाम से भी जाना जाता है। भक्त भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए बेलपत्र चढ़ाते हैं लेकिन माहेश्वरीयों में महेशजी को आपटा-पर्ण (सोनपत्ता/युग्मपत्र) चढाने की परंपरा रही है। आपटा का संस्कृत नाम 'अश्मंतक' है। पौराणिक साहित्य में आपटा को महावृक्ष कहा गया है। आपटा वृक्ष के पत्र हृदयाकृति होते है, इनका आकर ऐसा होता है जैसे की 2 भाग मिलकर एक ह्रदय (दिल) बना हो इसलिए इसे युग्मपत्र भी कहा जाता है। महाराष्ट्र में दशहरा के दिन 'आपटा' वृक्ष के पत्ते बाँटने की प्रथा को 'सोना' देना कहते हैं। मान्यता है की कुबेर ने आपटा के वृक्ष पर सुवर्णमुद्राओं की वर्षा की थी, इसीलिए आपटा-पर्ण को सोना (Gold) माना गया है। महेश-पार्वती को आपटा चढाने से धन-धान्य-समृद्धि की प्राप्ति होती है। पति-पत्नी मिलकर एकसाथ महेश-पार्वती को आपटा-पर्ण चढाने से उनका आपसी प्रेम बढ़ता है।

अश्मन्तक महावृक्ष महादोषनिवारण ।
इष्टानां दर्शनं देहि कुरु शत्रुविनाशनम् ।।
अर्थ: हे अश्मंतक महावृक्ष, तुम महादोषोंका निवारण करनेवाले हो। मुझे मेरे इष्टदेवताओं का, मित्रोंका दर्शन करवाओ और मेरे शत्रुओंका नाश करो।

क्या आपके पूजा में (पूजाघर में) महेश परिवार (भगवान महेशजी, सर्वकुलमाता आदिशक्ति माँ भवानी एवं सुखकर्ता-दुखहर्ता गणेशजी) बिराजमान है? ...यदि नही है तो सावन (श्रावण) माह के पावनपर्व पर सोमवार के दिन "महेश परिवार" को विधिपूर्वक अपने पूजा में स्थापित करें। प्रतिदिन (खासकर सोमवार के दिन) सपरिवार भगवान महेशजी की आरती करें। आपकी एवं आपके घर-परिवार की सुख-समृद्धि दिन ब दिन बढ़ती जाएगी। पौराणिक मान्यता है की जिस घर-परिवार में 'महेश परिवार' की फोटो या मूर्ति श्रध्दापूर्वक बिराजमान होती है वहां पूरा परिवार बड़े प्यार से मिल-जुलकर रहता है; साथ ही सुख-समृद्धि-सम्पदा की दिन-प्रतिदिन वृद्धि होती है।

श्रावण के इस प्रेम-पर्व पर महेश-पार्वती के चरणों में प्रार्थना है की आप सभी का दाम्पत्य जीवन आनंदमय-मंगलमय रहे। आप सभी को श्रावण मास की बहुत-बहुत शुभकामनाएं ! जय भवानी, जय महेश !!

देखें- भगवान गणेशजी की आरती > ॐ जय श्री गणेश हरे

देखें- महेशजी की आरती > जय महेश जय महेश जय महेश देवा


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